कवर्धाछत्तीसगढ़

महाशिवरात्रि व्रत कथा

महाशिवरात्रि की कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है

इस कथा के अनुसार पुरातन काल में एक शिकारी था, जिसका नाम चित्रभानु था। यह शिकारी एक साहूकार का कर्जदार था। कर्ज न दे पाने के की स्थिति में साहूकार ने उसे एक शिवमठ में बंदी बना दिया। संयोग से जिस दिन बंदी बनाया उस दिन महाशिवरात्रि थी। साहूकार ने इस दिन अपने घर में पूजा का आयोजन किया। पूजा के बाद कथा का पाठ किया गया। शिकारी भी पूजा और कथा में बताई गई बातों को बातों को ध्यान से सुनता रहा।

पूजा कार्यक्रम समाप्त होने के बाद साहुकान ने शिकारी को अपने पास बुलाया और उससे अगले दिन ऋण चुकाने की बात कही। इस पर शिकारी ने वचन दिया। साहुकार ने उसे मुक्त कर दिया। शिकारी जंगल में शिकार के लिए आ गया। शिकार की खोज में उसे रात हो गई। जंगल में ही उसने रात बिताई। शिकारी एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने लगा। संयोग से बेलपत्र के पेड़ नीचे एक शिवलिंग था। जो बेलपत्रों से ढक चुका था। इस बात का शिकारी को कुछ भी पता नहीं था। आराम करने के लिए उसने बेलपत्र की कुछ शाखाएं तोड़ीं, इस प्रक्रिया में कुछ बेलपत्र की पत्तियां शिवलिंग पर गिर पड़ी। शिकारी भूखा प्यास उसी स्थान पर बैठा रहा। इस प्रकार से शिकारी का व्रत हो गया। तभी गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने के लिए आई।

शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर हिरणी को मारने की जैसी ही कोशिश की वैसे ही हिरणी बोली मैं गर्भ से हूं, शीघ्र ही बच्चे को जन्म दूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे? यह उचित नहीं होगा। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तब तुम मेर शिकार कर लेना। शिकारी ने तीर वापिस ले लिया। हिरणी भी वहां से चली गई। धनुष रखने में कुछ बिल्व पत्र पुन: टूटकर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजा पूर्ण हो गई। कुछ देर बाद एक ओर हिरणी उधर से निकली। पास आने पर शिकारी ने तुरंत ही धनुष पर तीर चढ़ा कर निशाना लगा दिया। लेकिन तभी हिरणी ने शिकारी से निवेदन किया कि मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय को खोज रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने इस हिरणी को भी जाने दिया। शिकारी विचार करने लगा,

इसी दौरान रात्रि का आखिरी प्रहर भी बीत गया। इस बार भी उसके धनुष से कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे, इस प्रकार उसके द्वारा दूसरे प्रहर की पूजन प्रक्रिया भी पूर्ण हो गई। इसके बाद तीसरी हिरणी दिखाई दी जो अपने बच्चों के साथ उधर से गुजर रही थी। शिकारी ने धनुष उठाकर निशाना साधा। शिकारी तीर को छोड़ने वाला ही था कि हिरणी बोली मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंप कर लौट आऊंगी। मुझे अभी जानें दें। शिकारी ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। उसने बताया कि दो हिरणी को मैं छोड़ चुका हूं। हिरणी ने कहा कि शिकारी मेरा विश्वास करों, मै वापिस आने का वचन देती हूं।

शिकारी को हिरणी पर दया आ गई और उसे भी जाने दिया। उधर भूखा प्यासा शिकारी अनजाने में बेल की पत्तियां तोड़कर शिवलिंग पर फेंकता रहा। सुबह की पहली किरण निकली तो उसे एक मृग दिखाई दिया। शिकारी ने खुश होकर अपना तीर धनुष पर चढ़ा लिया, तभी मृग ने दुखी होकर शिकारी से कहा यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन हिरणियों और बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मार दो। देर न करो। क्योंकि मैं यह दुख सहन नहीं कर सकता हूं। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी छोड़ दो। मैं अपने परिवार से मिलकर वापिस आ जाऊंगा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। सूर्य पूरी तरह से निकल आया था और सुबह हो चुकी थी। शिकारी से अनजाने में ही व्रत, रात्रि-जागरण, सभी प्रहर की पूजा और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी। भगवान शिव की कृपा से उसे इसका फल तुरंत प्राप्त हुआ।

शिकारी का मन निर्मल हो गया। कुछ देर बाद ही शिकारी के सामने संपूर्ण मृग परिवार मौजूद था। ताकि शिकारी उनका शिकार कर सके। लेकिन शिकारी ने ऐसा नहीं किया और सभी को जाने दिया। महाशिवरात्रि के दिन शिकारी द्वारा पूजन की विधि पूर्ण करने के कारण उसे मोक्ष प्राप्त हुआ। शिकारी की मृत्यु होने पर यमदूत उसे लेने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापिस भेज दिया। शिवगण शिकारी को लेकर शिवलोक आ गए। भगवान शिव की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु स्वयं के पिछले जन्म को याद रख पाए और महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।

हे भोलेनाथ, हे शिव शम्भू , हे महाकाल , जिस प्रकार आपने शिकारी को मोक्ष प्रदान करकेजीवन के जन्म मरण के चक्र से मुक्त करके अपना लोक प्रदान किया। उसी प्रकार सभी भक्तों पर भी अपनी कृपा बनाये रखना।

*जय शिव शंकर..*

*जय महाकाल …*

*हर हर महादेव …*

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