कवर्धाछत्तीसगढ़संपादकीय

राजनीतिक संगठन की भुमिका चुनाव में* ?

कवर्धा -:*बल्लूराम डांट काम* -विजय कुमार धृतलहरे

 

राजनीतिक संगठन का उद्देश्य ही सत्ता की चाबी अपने पास हर हाल में लेना है और सरकार खुद चलाने की होती है मुख्य उद्देश्य राजनीतिक दलों की सरकार चलाने की होती है उसके लिए तमाम प्रकार के माध्यम चुना जाता है और हर प्रकार के कार्यों का संपादन की जाती है और जनता के नजरों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है और अपने पक्ष में करने का प्रयास करती है।

वर्तमान समय में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहा है जिसमें मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ में चुनाव संपन्न हुआ है राजेस्थान तेलंगाना राज्य में चुनाव प्रचार चरम पर है और राजनीतिक दलों के शिर्ष नेतृत्व अपने दल का सरकार बनाने हर हथकंडे अपना रहे हैं जैसे की आप को हम पहले ही बतायें है राजनीतिक दलों के उद्देश्य सत्ता प्राप्त,उसके लिए पुरी निष्ठा से दलों के नेताओं ने पुरा करने में जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं।

वंही हम स्थानीय राजनीतिक दलों की बात करें तो कबीरधाम जिला में भाजपा, कांग्रेस, बसपा, छजका,आप, गोगंपा, जैसे राजनितिक दल इस बार पुरी दम से चुनाव में भाग लिये और कवर्धा पंडरिया विधायक बनाने अपने अपने दलों के लिए जनता के बीच जाकर काम भी किए हैं ।

और जनता सभी दलों के बात सुनें है,समझें है,और अपना निर्णय भी जनता 7 नवम्बर को मतपेटी में कैद कर चुके हैं जिसके प्रदर्शन 3 दिसंबर को निर्वाचन विभाग कर देंगी और आप समझ जायेंगे जनता के नजरों में कौन बेहतर है!और उसके बेहतरी के पीछे क्या है ।

बहर हाल हम बात कर रहे संगठन की भुमिका चुनाव में तो संगठन के कामकाज इस बार के विधानसभा चुनाव में संगठन के जानकार बताते हैं अजीबो गरीब रहा है कांग्रेस या भाजपा जैसे बड़े दल के संगठन चुनाव बीत गया पर अपनी भुमिका तय करते दिखाई नहीं दियें है।पुरा चुनाव बीत गया प्रत्याशी पर चुनाव टिका रहा संगठन की भुमिका क्या रही कहा रही संगठन के जानकार अब तक विष्लेषण ही करते रह गये है पर विश्लेषण वहा आकर अटक जाती है दोनों दल के जिला संगठन हो या ब्लाक या मंडल स्तरीय संगठन की भुमिका कहा रही और क्या रही ? जबकी दोनों दलों के नामी नेता सिर्फ मंचीय सांझा में शामिल दिखें पर जनता तक पहुंचते दिखाई नहीं दिये है अब जनता तक पहुंचते दिखाई नहीं देने के पिछे क्या कारण है यहीं पर संगठन की भुमिका तय होती है आखिर क्या है भुमिका?

विधानसभा चुनाव बीत गया पर दल के मुखिया जनता तक तो दुरी बनायें रहे अपुष्ट सुत्रोंनुसार बताया जा रहा है अपने कार्यकर्ताओं तक से दूरी बनाए रहे परिणाम अनेक छोटे बड़े कार्यकर्ता अपनी पुंछ परख का इंतजार करते रह गये और पुरा चुनाव बीत गया यही अब चर्चा गरम है कौन नेता भीतर घात किया है कौन दुष्प्रभाव डाला है किस पर दल अनुशासन की डंडा चलायेंगी किसको सत्कार करेंगी यही चर्चा हर आम और खास के जुबानी सुनते कहते देखी जा रही है पर जानकार यह भी समझ रहे हैं राजनीतिक दलों के मुखिया इस बार के चुनाव में अवश्य कमजोर प्रदर्शन करते दिखाई दिए हैं परिणाम जनता के बीच जनाधार रखने वाले वरिष्ठ नेताओं को भी चुनाव से दूर रहना पड़ा है इसके मुख्य कारण विरोध नहीं माना जा सकता संगठन द्वारा जिम्मेदारी तय होती है संगठन अपने नेताओं कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी निर्धारित नहीं करती है तो छोटे बड़े कार्यकर्ता के पास कौन सा कार्य करें और किस आधार पर करें यह सवाल खड़ा होता है परिणाम अपनी जिम्मेदारी का अहसास रखते हुए भी जनता तक पहुंच पानें में कठिनाइयां बता कर दूर से ही नजारा देखने में बेहतरी मान लिया जाता है और इस बार के विधानसभा चुनाव में यही देखा और समझा गया है।

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